श्रीमद्भागवत प्रथम स्कंध चौथा अध्याय
वर्तमान चतुर्युगी के तीसरे युग द्वापर में महर्षि पराशर के द्वारा वसुकन्या सत्यवती के गर्भ से भगवान के कलावतार योगिराज व्यासजी का जन्म हुआ|
एक दिन वह सूर्योदय के समय सरस्वती के पवित्र जल में स्नान करके एकांत स्थान पैर बैठे थे| महर्षि भूत और भविष्य को जानते थे| उन्होंने देखा की समय के फेर से प्रत्येक युग में संसार के लोग श्रद्धाहीन और शक्तिहीन हो जाते हैं| उनकी बुद्धि कर्त्तव्य का सही सही निर्णय नहीं ले पाती और आयु भी काम होती जाती है|
अतः इस दृष्टि से यज्ञों का विस्तार करने के लिए उन्होंने एक ही वेद के चार विभाग केर दिए| व्यास जी के द्वारा- ऋक, यजुः, साम और अथर्व, इन चार वेदों का उद्धार हुआ| इतिहास और पुराणों को पांचवा वेद कहा जाता है| उनमे से ऋग वेद को पैल, साम गान के विद्वान जैमिनी, यजुर्वेद के एकमात्र स्थापक वैशम्पायन हुए| अथर्व वेद में प्रवीण हुए दारुण नंदन सुमन्तु मुनि| इतिहास और पुराणों के स्नातक सूतजी के पिता रोमहर्षण थे|
इन ऋषियों ने अपनी अपनी शाखाओं को और भी अनेक विभागों में विभक्त कर दिया| इस प्रकार शिष्यों, प्रशिष्यो द्वारा वेदों की अनेक शाखाएं बन गयीं|
स्त्री, क्षुद्र, पतित, द्विजाति- कल्याणकारी शास्त्रोक्त कार्यों के आचरण में भूल कर जाते है| उनका भी कल्याण हो जाये, इसलिए व्यास जी ने महाभारत की रचना की| यद्यपि व्यास जी पूरी लगन से प्राणियों के कल्याण में लगे रहे, तथापि उनके ह्रदय को संतोष नहीं मिला|
व्यासजी जब सन्यास के लिए वन में जाते अपने पुत्र शुकदेव जी का पीछा कर रहे थे, उस समय जल में स्नान करने वाली स्त्रियों ने नंगे शुकदेव जी को देख कर तो वस्त्र धारण नहीं किया परन्तु व्यासजी को देख कर लज्जा से वस्त्र पहन लिए थे| इस आश्चर्य को देखकर व्यासजी ने उन स्त्रियों से इसका कारण पूछा| तब उन्होंने उत्तर दिया- आपकी दृष्टि में तो अभी स्त्री पुरुष का भेद बना है, परन्तु आपके पुत्र की शुद्ध दृष्टि में यह भेद नहीं है| वह बड़े योगी, समदर्शी, भेदभावरहित संसारनिद्रा से जगे रहते है|
व्यासजी ने मन में स्मरण किया कि- अवश्य ही मैंने भगवान को प्राप्त करने के लिए धर्मों का निरूपण नहीं किया है|
उसी समय देवर्षि नारद वहां पहुँचते हैं| उन्हें आया देख व्यासजी तुरंत खड़े हो गए| उन्होंने देवताओं द्वारा सम्मानित नारदजी की विधि पूर्वक पूजा की|
एक दिन वह सूर्योदय के समय सरस्वती के पवित्र जल में स्नान करके एकांत स्थान पैर बैठे थे| महर्षि भूत और भविष्य को जानते थे| उन्होंने देखा की समय के फेर से प्रत्येक युग में संसार के लोग श्रद्धाहीन और शक्तिहीन हो जाते हैं| उनकी बुद्धि कर्त्तव्य का सही सही निर्णय नहीं ले पाती और आयु भी काम होती जाती है|
अतः इस दृष्टि से यज्ञों का विस्तार करने के लिए उन्होंने एक ही वेद के चार विभाग केर दिए| व्यास जी के द्वारा- ऋक, यजुः, साम और अथर्व, इन चार वेदों का उद्धार हुआ| इतिहास और पुराणों को पांचवा वेद कहा जाता है| उनमे से ऋग वेद को पैल, साम गान के विद्वान जैमिनी, यजुर्वेद के एकमात्र स्थापक वैशम्पायन हुए| अथर्व वेद में प्रवीण हुए दारुण नंदन सुमन्तु मुनि| इतिहास और पुराणों के स्नातक सूतजी के पिता रोमहर्षण थे|
इन ऋषियों ने अपनी अपनी शाखाओं को और भी अनेक विभागों में विभक्त कर दिया| इस प्रकार शिष्यों, प्रशिष्यो द्वारा वेदों की अनेक शाखाएं बन गयीं|
स्त्री, क्षुद्र, पतित, द्विजाति- कल्याणकारी शास्त्रोक्त कार्यों के आचरण में भूल कर जाते है| उनका भी कल्याण हो जाये, इसलिए व्यास जी ने महाभारत की रचना की| यद्यपि व्यास जी पूरी लगन से प्राणियों के कल्याण में लगे रहे, तथापि उनके ह्रदय को संतोष नहीं मिला|
व्यासजी जब सन्यास के लिए वन में जाते अपने पुत्र शुकदेव जी का पीछा कर रहे थे, उस समय जल में स्नान करने वाली स्त्रियों ने नंगे शुकदेव जी को देख कर तो वस्त्र धारण नहीं किया परन्तु व्यासजी को देख कर लज्जा से वस्त्र पहन लिए थे| इस आश्चर्य को देखकर व्यासजी ने उन स्त्रियों से इसका कारण पूछा| तब उन्होंने उत्तर दिया- आपकी दृष्टि में तो अभी स्त्री पुरुष का भेद बना है, परन्तु आपके पुत्र की शुद्ध दृष्टि में यह भेद नहीं है| वह बड़े योगी, समदर्शी, भेदभावरहित संसारनिद्रा से जगे रहते है|
व्यासजी ने मन में स्मरण किया कि- अवश्य ही मैंने भगवान को प्राप्त करने के लिए धर्मों का निरूपण नहीं किया है|
उसी समय देवर्षि नारद वहां पहुँचते हैं| उन्हें आया देख व्यासजी तुरंत खड़े हो गए| उन्होंने देवताओं द्वारा सम्मानित नारदजी की विधि पूर्वक पूजा की|
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