एक बार लक्ष्मी जी और गणेश जी में लड़ाई हो गयी | लक्ष्मी जी बोली मैं बड़ी , गणेशजी बोले मैं बड़ा | तब दोनों ने सोचा इस बात का फैसला पृथ्वी वासी करेंगे | ऐसा सोच कर दोनों पृथ्वी की ओर रवाना हुए |
गणेशजी एक छोटे बच्चे का रूप धर के एक चुटकी चावल और एक चम्मच में दूध लेकर लोगो से कहते ' कोई मेरे लिए खीर बना दो ',पर किसी ने उनके लिए खीर नहीं बनायीं|
चलते चलते वो एक गाँव पहुंचे | उनको देख एक बुढ़िया को उन पर दया आ गयी | वह बोली " ला बेटा ! मैं तेरी खीर बनाती हू " ऐसा कह कर वह एक छोटी कटोरी ले आई | यह देख बालक बोला " अरे बुढ़िया ! इस कटोरी से क्या होगा !! बड़े बड़े भगोने ला "
बुढ़िया ने ऐसा ही किया | जब बालक ने उसमे चुटकी के चावल और चम्मच का दूध डालना शुरू किया, तो पूरा भगोना भर गया, पर न तो चुटकी के चावल ख़त्म हों , न ही चम्मच का दूध | इस तरह घर के पूरे बर्तन दूध चावल से भर गए |
गणेश जी ने कहा की " जब खीर बन जाये तो मंदिर का घंटा बजा देना , मैं आ जाऊंगा " तब बुढ़िया ने पूछा " इतनी सारी खीर का मैं क्या करुँगी " तो बालक ने कहा की पूरे गाँव का न्योता दे दो |
इस तरह जब खीर बन गयी तो बुढ़िया गाँव को न्योता देने चली गयी | पीछे से उसकी बहु को भूख लगी | उसने चुपके से एक कटोरे में खीर खा के , झूठा कटोरा चौकी के नीचे सरका दिया |
अब जब बुढ़िया वापस आई तो मंदिर का घंटा बजाती डोले, अरे गणेश बेटा !! आजा भोग लगा ले | पर गणेश बेटा नहीं आया | जब बहुत देर हो गयी , तब गणेशजी आये | बुढ़िया ने कहा " मै कब से बुला रही हु , तू आया क्यों नहीं " , बालक बोला-" मैं क्या करता , तेरी बहु तो पहले ही भोग लगा चुकी है, न माने तो देख ले चौकी के नीचे झूठा कटोरा रखा है |
फिर सारे गाँव वालो को खिलाने के बाद भी खीर बच गयी तो उसने पूछा इसका क्या करूँ ? तब बालक ने कहा की " इस खीर को घर के चारों कौनो में भगोने को उल्टा मांड दो | बुढ़िया ने ऐसा ही किया | सुबह उठ के देखा की घर में हीरे जवाहरात जगमगा रहे थे |
उधर जब बहुत दिन बीत गये तब लक्ष्मी जी ने सोचा की अब मुझे भी चलना चाहिए| वह एक भिखारिन का रूप धर के उसी गाँव में पहुँची जहाँ गणेश जी रुके थे| उन्होने लोगों से कहा- "कोई मुझे खाना खिला दो", एक आदमी उनके लिए खाना लाया, तो लक्समी जी बोली- "मैं तो अपने बर्तन में ही खाना खाती हूँ" | एसा कह के उन्होने अपने थैले में हाथ डाला और उसमे से चाँदी के थाली , कटोरी , चम्मच निकाली| उसमें खाना खा के वह बर्तन वहीं छोड़ के जाने लगीं| तो आदमी बोला- "माताजी ! अपने बर्तन तो लेती जाओ"| तब लक्ष्मी जी बोली-"भैया! मैं तो जहाँ खाना खाती हूँ, वहीं बर्तन छ्चोड़ देती हूँ"| एसा कह के लक्ष्मीजी वहाँ से आगे चल दी|
अब तो पूरे गाँव मे खबर फैल गयी की एक भिखारिन है, जो अपने चाँदी के बर्तन वहीं छोड़ देती है जहाँ खाना खाती है| इस तरह पूरे गाँव में उनको खाना खिलाने की होड़ लग गयी|
गणेश जी समझ गये हो न हो ये लक्ष्मी जी हैं| आते ही, एक ही दिन में मेरी महीनो की महनत पर पानी फेर दिया| सारे भक्तों को अपने धन का लालच देकर अपने वश में कर लिया| सोचते हुए जल्दी से सुंड हिलाते हुए चले| आगे आगे लक्ष्मीजी, पीछे पीछे गणेश जी चले| उनको देख कर सब लोगों ने कहा - लक्ष्मीजी बड़ी हैं|
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