मृत्यु,उठामनी,तेरहवीं,श्राद्ध (Shradh / Death Rituals)

१) डेड बॉडी को घर के बरामदे या हॉल में उत्तर-दक्षिण दिशा में लिटाया जाता है| सिर उत्तर दिशा में और पैर दक्षिण दिशा में किया जाता है|

२) बॉडी के मुँह, आँख और कान बंद होने चाहिए| यदि किसी कारणवश मुँह खुला रह गया है तो सिर से कानों से सहारे ठोडी तक पट्टी से बाँध कर मुँह बंद कर देना चाहिए|

३) घर के बेटे-बहु , नाती-पोते बॉडी के पैर छूते हैं, रुपये चढ़ाते हैं और बॉडी के चारों और तीन परिक्रमा केरते हैं|

४) बॉडी जब शमशान चली जाती है तब थोड़ी देर के बाद उस जगह को सॉफ कर दिया जाता है| यदि घर के सदस्य वहीं आस पास बैठे हो तो ध्यान रहे कोई भी बड़ा या बच्चा उस जगह को लाँघ कर ना आए| गर हो सके तो आटे या चाक से बाउंड्री  बनाई जा सकती है|

५) अंधेरा होने पर घर के बेटे उस जगह पर (जहाँ सिर रखा था), मिट्टी के दीपक में, मिट्टी के तेल का, एक बत्ती का, दीपक जला के आते हैं| एसा उठामनी तक रोज किया जाता है| उठमनी के बाद यह दीपक वहाँ जलाया जाता है जहाँ घट भरा जाता है|

६) डेत होने के बाद से ही मंदिर एवं किचन नहीं छुई जाती है| किचन में गैस नहीं जलाई जाती है| खाना-पीना दोस्त अथवा पड़ोसी के घर से लाया जाता है|

- मृत्यु होने के बाद से ही, दागी एवं मृत का पति अथवा पत्नी को अलग आसन दे दिया जाता है| वे दौनो घर के अन्य लोगों से अलग बैठते अथवा अलग सोते है|

- मृत्यु के बाद से घर की कोई औरत, आदमी, बच्चा, सिर नहीं धोती है| न ही दाढ़ी, बाल काटे जाते हैं|

७) मृत्यु के तीसरे दिन उठामनी की जाती है| इसका मतलब है कि "उठो!! जाने वाला चला गया, अब शोक मत करो, अपनी दुकान खोल सकते हो"|

- उठामनी वाले दिन का खाना समधियों के यहाँ से आता है|

८) चौथे दिन से सुबह एक समय गैस जला के गौग्रास निकाला जाता है| उसमें बिना छौंक, हल्दी की दाल बनाई जाती है| कढ़ाई नहीं चढ़ाई जाती है| तवे पर रोटी बनाई जाती है, पराठे नहीं| सब्जी भी बनाई जा सकती है, परंतु कुकर में, कढ़ाई में नहीं| गौग्रास निकालने के लिए, थाली में उल्टे हाथ से एक एक  करके तीन बार में तीन रोटी रखी जाती हैं| इसी प्रकार से कटोरी में उल्टे हाथ से ही तीन बार में दाल एवं सब्जी रखी जाती है| एक मिठाई का पीस भी रखा जाता है| स्टील की थाली न लेकर डिस्पोजल प्लेट स्तेमाल केरनी चाहिए| एसी कोई चीज़ नहीं रखनी चाहिए जो मृत को पसंद ना हो|

- गौग्रास के बाद किसी भिखारी या साधु को खाना खिलाया जाता है| यह खाना दागी द्वारा दिलवाया जाता है| तदपश्चात दागी को खाना दिया जाता है, उसके बाद बिछौनिए को, उसके बाद घर के अन्य सदस्य खाना खाते हैं|

९) उस दिन अगर कहीं से शाम का खाना नहीं आया हो तो उसी गैस पर शाम के लिए  खाना बना लिया जा सकता है, परंतु छोंक एवं बिना हल्दी का|

- दागी (जिसने चिता को अग्नि दी हो) कंवारा हो तो कपड़े व पगड़ी ननिहाल से आती है|


- दशमी वाले दिन बेटों, पोतों के बाल काटते है, शेव बनती है| औरतें सिर धो कर नहाती हैं| शैम्पू इस्तेमाल किया जा सकता है|

- दशमी वाले दिन का खाना समधियों की तरफ से होता है| उस दिन दागी के कपड़े, तिलक, मिठाई समधियाने से आती है|

- अगर आदमी की मृत्यु हुई हो तो दशमी वाले दिन उसकी विधवा के बिछुए, साड़ी, चूड़ी और बिंदी उसके मायके से आती है| उसका भाई सब चीज़ से हाथ लगा देता है, और नायन पहनाती है| बाद में साड़ी नायन को दे दी जाती है|

- विधवा का बिछौना भी दागी की तरह अलग होता है, बर्तन भी|

- उठामनी वाले दिन बॉडी के इस्तेमाल किए हुए बिस्तर, चादर, तकिया, प्लेट, कटोरी, चम्मच, गिलास, शेविंग किट, नाई को दे दी जाती है|

- तेरहवीं वाले दिन सब चीज़ नयी, जो भी मृत को पसंद हो, तथा गद्दा, पलंग, तकिया, चादर, रज़ाई, छाता, कुर्ता-पाजामा, तौलिया, घड़ी, तेल, कंघा, शीशा, शेविंग का सामान, ये सब कुछ 13 ब्राहमणो को दिया जाता है| 

- तेरहवीं वाले दिन, हलवा पूरी बनाने के बाद घर की औरते मंदिर जाती हैं| 



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