1) सिया खेले जनक दरबार
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१) सात बरस की भई सिया जब इत उत खेलन जाय
माँग करे छोटी गुथे रे, हर कोई देख सिहाय
बरस भई हरे हरे, बरस भई सात की
सिया खेले जनक दरबार
२) चौखट (दरवाजा) चौका (रसोई) लीप लियो है, चारों कौनो पुताय
पराश राम का धनुष रखा है, अचक ही लियो है उठाय
बरस भई हरे हरे, बरस भई सात की
सिया खेले जनक दरबार
३) रानी तब राजा से बोली, सुनो राजा मेरी बात
जो कोई या धनुष को तोड़े, वहीं को सिया है ब्याहो
बरस भई हरे हरे, बरस भई सात की
सिया खेले जनक दरबार
४) तुलसी दास आस रघुवर की, हरी चरणन बलिहार
जाके मुकुट बंधिनी सोहे, वहीं को सिया है ब्याहो
बरस भई हरे हरे, बरस भई सात की
सिया खेले जनक दरबार
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सिया खेले जनक दरबार, बरस भई हरे हरे
बरस भई सात की१) सात बरस की भई सिया जब इत उत खेलन जाय
माँग करे छोटी गुथे रे, हर कोई देख सिहाय
बरस भई हरे हरे, बरस भई सात की
सिया खेले जनक दरबार
२) चौखट (दरवाजा) चौका (रसोई) लीप लियो है, चारों कौनो पुताय
पराश राम का धनुष रखा है, अचक ही लियो है उठाय
बरस भई हरे हरे, बरस भई सात की
सिया खेले जनक दरबार
३) रानी तब राजा से बोली, सुनो राजा मेरी बात
जो कोई या धनुष को तोड़े, वहीं को सिया है ब्याहो
बरस भई हरे हरे, बरस भई सात की
सिया खेले जनक दरबार
४) तुलसी दास आस रघुवर की, हरी चरणन बलिहार
जाके मुकुट बंधिनी सोहे, वहीं को सिया है ब्याहो
बरस भई हरे हरे, बरस भई सात की
सिया खेले जनक दरबार
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