from: Shrimad Bhagwat ( HINDI)

This page contains stories from SHRIMAD BHAGWAT in Hindi. I hope my efforts will be successful.


श्रीमद् भागवत प्रथम स्कंध ( Shrimad Bhagwat Episode First)

4) चौथा अध्‍याय- महर्षि व्यास का असंतोष ( Chapter Fourth- Maharshi Vyas ka Asantosh )

वर्तमान चतुर्युगी के तीसरे युग द्वापर में महर्षि पराशर के द्वारा वसुकन्या सत्यवती के गर्भ से भगवान के कलावतार योगिराज व्यासजी का जन्म हुआ| एक दिन वह सूर्योदय के समय सरस्वती के पवित्र जल में स्नान करके एकांत स्थान पैर बैठे थे| महर्षि भूत और भविष्य को जानते थे| =]

3) तीसरा अध्याय- भगवान के अवतारों का वर्णन ( Chapter Third- Bhgwan ke avtaro ka varnan )

जब  सृष्टि के आरंभ में भगवान को लोकों के निर्माण की इच्छा हुई, तो उन्होने निष्पन्न पुरुष रूप धारण किया| उसमें दस इंद्रियाँ, एक मन, पाँच भूत- ये सोलह कलाएँ थी| उन्होने जल में शयन करते हुए जब योगनिद्रा का विस्तार किया तब उनके नाभि सरोवर में से एक कमल प्रकट हुआ और उस कमल से


श्रीमद् भागवत आरंभ (starting of Shrimad Bhagwat)


5) पाँचवा अध्याय- धूंधुकारी को प्रेत योनि की प्राप्ति और उससे उद्धार ( Chapter Fifth-dhundhukari ko pret yoni ki prapti aur usse uddhar ) / Story of dhundhukari

पिता के वन चले जाने पर एक दिन धूंधुकारी ने अपनी माता को बहुत पीटा और कहा- बता! धन कहाँ रखा है? नहीं तो जलती लकड़ी से तेरी खबर लूँगा| उसकी इस धमकी से डर कर तथा दुखी होकर धूंधुलि ने कुएँ में गिर कर प्राण त्याग दिए| धूंधुकारी पाँच वैश्याओं के साथ घर में रहने लगा|  

4.) चौथा अध्याय- गौकर्णोपाख्यान प्रारंभ  ( Chapter Fourth- Story of Goukarn or Gokarn )

पूर्व काल में तुंगभद्रा नदी के तट पर एक अनुपम नगर बसा हुआ था| उस नगर में समस्त वेदों का विशेषग्य आत्मदेव नामक ब्राम्हन रहता था| उसकी पत्नी धूंधुलि कुलीन एवं सुंदर होने पर भी सदा अपनी बात पर अड़ी रहने वाली थी|

3.) तीसरा अध्याय- भक्ति के कष्ट का निवारण ( Chapter Third- Bhakti ke Kasht ki Nivriti )

जब भगवान श्रीकृष्ण इस धराधर को छोड़कर अपने  नित्य धाम को पधारने लगे, तब उद्धवजी ने उनसे पूछा:उद्धवजी कहते हैं- गोविंद! आप तो अपने भक्तों के कार्य करके परम धाम पधारना  चाहते हैं| अब तो कलियुग आया ही समझो| इसलिए संसार में फिर अनेकों दुष्ट प्रकट हो जाएँगे|

2.) दूसरा अध्याय- भक्ति का दुख दूर करने के लिए नारद जी का उद्योग ( Chapter Second- Bhakti ka dukh dur karne ke liye narad ka udyog )

एक बार जब भक्ति ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा कि मैं " क्या करू? " तब भगवान ने उसे आग्या दी कि "मेरे भक्तों का पोषण करो| " भक्ति ने भगवान की वह आग्या स्वीकार कर ली| तब श्री कृष्ण ने प्रसन्न हुए और उसकी सेवा के लिए मुक्ति को दासी रूप 

1.) प्रथम अध्याय- देवर्षि नारद की भक्ति से भेंट ( Chapter First- Devarshi Narad ki Bhakti Se Bhet )

एक बार नारद जी पृथ्वी को सर्वोत्तम लोक मानकर यहाँ विचरण करने आए | यहाँ पुष्कर, प्रयाग, हरिद्वार, कुरुक्षेत्र, आदि कई तीर्थों में इधर उधर विचरते रहे, किंतु कहीं भी उनको मन को संतोष देने वाली शांति नहीं मिली | 






Srimad Bhagwat in Hindi







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