कभी फुरसत हो तो जगदम्बे, निर्धन के घर भी आ जाना
जो रूखा सूखा दिया हमें उसका तुम भोग लगा जाना
कभी फुरसत.....
१) न छत्र बना सका सोने का, न चुनरी घर मेरे तारों जड़ी
न लड्डू बर्फी मेवा है, माँ बस श्रद्धा है नैन बिछाए खड़ी
इस श्रद्धा की रख लो लाज हे माँ, मेरी अर्जी को न ठुकरा जाना
कभी फुरसत हो तो....
२) जिस घर के दिए में तेल नहीं, तेरी ज्योति जगाउँ मैं कैसे
मेरा खुद ही बिछौना धरती पर, तेरी चौकी सज़ाउँ मैं कैसे
जहाँ मैं बैठा हूँ वहीं बैठ के माँ, बच्चों का दिल बहला जाना
कभी फुरसत हो तो....
३) तुम भाग्य बनाने वाली हो और मैं तकदीर का मारा हूँ
हे दाती सम्भालो भिखारी को, आख़िर तेरी आँख का तारा हूँ
मैं दोषी तू निर्दोष है माँ, मेरे दोषों को तू भुला जाना
This comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDelete