हम वन को चले पद वंदन है, अपयश न मनाना आँगन में
जब भरत के सिर पर ताज बँधे, तब दीप जलाना आँगन में
हम वन को चले पद वंदन है, अपयश न मनाना आँगन में
१) मेरी माँ और मांझली मैया को, छोटी माँ को कोई तकलीफ़ न हो
मेरे पुज्य पिताजी का ध्यान रहे, निज धर्म निभाना आँगन में
हम वन को चले पद वंदन है, अपयश न मनाना आँगन में
२) जब अवध में कोई पर्व पड़े, तब याद हमें भी कर लेना
मेरे भरत शत्रुघ्न भैया को गोदी में खिलाना आँगन में
हम वन को चले पद वंदन है, अपयश न मनाना आँगन में
३) ननिहाल से लौट के आए भरत, हमारा आशीष माता कह देना
कहना की राम वन चले गये, आँसू न बहाना आँगन में
हम वन को चले पद वंदन है, अपयश न मनाना आँगन में
४) अब चौदह बरस के बाद ही माँ, जीवन होगा तो दर्शन होंगे
त्रिलोक्य वीदित है सूर्या वंश, नृिप लहू का घराना आँगन में
हम वन को चले पद वंदन है, अपयश न मनाना आँगन में
जब भरत के सिर पर ताज बँधे, तब दीप जलाना आँगन में
हम वन को चले पद वंदन है, अपयश न मनाना आँगन में
१) मेरी माँ और मांझली मैया को, छोटी माँ को कोई तकलीफ़ न हो
मेरे पुज्य पिताजी का ध्यान रहे, निज धर्म निभाना आँगन में
हम वन को चले पद वंदन है, अपयश न मनाना आँगन में
२) जब अवध में कोई पर्व पड़े, तब याद हमें भी कर लेना
मेरे भरत शत्रुघ्न भैया को गोदी में खिलाना आँगन में
हम वन को चले पद वंदन है, अपयश न मनाना आँगन में
३) ननिहाल से लौट के आए भरत, हमारा आशीष माता कह देना
कहना की राम वन चले गये, आँसू न बहाना आँगन में
हम वन को चले पद वंदन है, अपयश न मनाना आँगन में
४) अब चौदह बरस के बाद ही माँ, जीवन होगा तो दर्शन होंगे
त्रिलोक्य वीदित है सूर्या वंश, नृिप लहू का घराना आँगन में
हम वन को चले पद वंदन है, अपयश न मनाना आँगन में
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